समरकंद नाम के एक प्राचीन और सुंदर शहर में एक आलीशान महल था, जिसमें रहती थी एक राजकुमारी जिसका नाम जरीना था। जरीना अपनी अद्वितीय सुंदरता और बुद्धिमत्ता के लिए पूरे राज्य में प्रसिद्ध थी। उसका हृदय उतना ही कोमल था जितना उसकी बुद्धि तीक्ष्ण थी। उसके पिता, राजा बहराम, चाहते थे कि उनकी बेटी का विवाह एक ऐसे व्यक्ति से हो जो न केवल साहसी हो, बल्कि उसकी बुद्धि की परीक्षा भी उत्तीर्ण कर सके। इसलिए उन्होंने घोषणा की कि जो कोई भी जरीना की तीन कठिन पहेलियों को हल कर देगा, वही उसका दूल्हा बनेगा।
समरकंद के महल में दूर-दूर से राजकुमार और योद्धा आए, लेकिन जरीना की पहेलियों का जवाब कोई नहीं दे पाया। हर राजकुमार अपनी कोशिश में असफल होकर लौट जाता। लेकिन जरीना को इस बात से कोई दुःख नहीं था, क्योंकि वह जानती थी कि उसे सच्चे प्रेम और निष्ठा की तलाश थी।
एक दिन, समरकंद के बाज़ार में एक साधारण सा दिखने वाला नौजवान पहुंचा, जिसका नाम फरहाद था। वह गरीब था, लेकिन उसका दिल ईमानदार और साहसिक था। जब उसने जरीना और उसकी पहेलियों के बारे में सुना, तो उसने भी अपनी किस्मत आज़माने का निश्चय किया। बिना किसी डर के, वह महल पहुंचा और राजा के दरबार में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।
राजा बहराम ने जब फरहाद को देखा, तो उसे पहले संदेह हुआ, क्योंकि वह न तो किसी बड़े राज्य का राजकुमार था और न ही कोई महान योद्धा। लेकिन फिर भी, उन्होंने उसे मौका दिया। जरीना महल की ऊँची बालकनी से नीचे आई और उसने अपनी पहली पहेली फरहाद से पूछी:
“ऐसा क्या है जो जितना तुम इसे बांटते हो, उतना ही यह बढ़ता जाता है?”
फरहाद ने थोड़ी देर सोचा और फिर उत्तर दिया, “प्रेम।”
जरीना ने मुस्कुराते हुए उसकी बुद्धिमत्ता की सराहना की और फिर दूसरी पहेली पूछी:
“वह क्या है, जो बिना पंखों के उड़ता है, और बिना पैरों के दौड़ता है?”
फरहाद ने आत्मविश्वास से कहा, “वह समय है।”
अब जरीना के चेहरे पर उत्सुकता और प्रसन्नता दोनों का मिश्रण था। वह जान चुकी थी कि फरहाद सिर्फ एक साधारण व्यक्ति नहीं था, बल्कि उसकी बुद्धि और दिल की गहराई अद्वितीय थी। उसने तीसरी और आखिरी पहेली पूछी:
“वह क्या है, जो मरने के बाद भी जीवित रहता है?”
फरहाद ने धीरे से जवाब दिया, “यश, या वह महान कार्य जो हम दुनिया में करते हैं।”
जरीना ने ठहरकर फरहाद को देखा और उसके उत्तर से प्रभावित हो गई। उसके सभी उत्तर सही थे। राजा बहराम ने घोषणा की कि फरहाद अब उनकी बेटी का वर बनेगा, और महल में उत्सव की तैयारियाँ शुरू हो गईं।
लेकिन कहानी यहाँ खत्म नहीं हुई। जरीना की एक चाची, जो दरअसल एक जादूगरनी थी, ने फरहाद के प्रेम की सच्चाई पर संदेह किया। उसने फरहाद को एक असंभव चुनौती दी — उसे एक खजाने की खोज करनी थी, जो किसी ने पहले नहीं देखा था। इस खजाने को ढूंढ़ना ही उसकी प्रेम और निष्ठा की सच्ची परीक्षा थी।
फरहाद ने बिना किसी झिझक के यह चुनौती स्वीकार कर ली और यात्रा पर निकल पड़ा। उसने जंगलों में राक्षसों से मुकाबला किया, पहाड़ों के पार गया और समुद्र के पार समुद्री डाकुओं से लड़ा। इस लंबी और कठिन यात्रा में, उसकी हर परीक्षा ने उसके धैर्य और साहस को परखा। उसकी यात्रा कठिन और जोखिमभरी थी, लेकिन वह कभी हार नहीं मानता।
अंत में, एक सुनसान घाटी में एक परी उससे मिली और बोली, “वास्तविक खजाना तुम्हारे साहस और निष्ठा में छिपा है। खजाना वह नहीं है जो तुम ढूंढ रहे हो, बल्कि वह प्रेम है जो तुमने अपने हृदय में संजोया है। जाओ, और जरीना के पास लौटो।”
फरहाद यह सुनकर समझ गया कि जादूगरनी की चुनौती का असली मकसद उसकी निष्ठा को परखना था। वह तुरंत समरकंद वापस लौटा और जरीना के सामने अपनी कहानी रखी। जरीना ने उसकी ईमानदारी, साहस और प्रेम को पहचाना और खुशी से उसका स्वागत किया। राजा बहराम भी उसकी बहादुरी से प्रभावित हुए और उन्होंने अपनी बेटी का हाथ फरहाद को सौंप दिया।
जरीना और फरहाद की शादी धूमधाम से हुई और उनके प्रेम की कहानी पूरे समरकंद में अमर हो गई।