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अली बाबा और चालीस चोर

यह कहानी प्राचीन बगदाद शहर की है, जहाँ दो भाई रहते थे – कसिम और अली बाबा। कसिम अमीर था और उसका व्यापार खूब फल-फूल रहा था, जबकि अली बाबा गरीब था और अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए जंगल से लकड़ियाँ काटकर बेचता था। एक दिन, अली बाबा जब जंगल में लकड़ियाँ काट रहा था, तभी उसने अचानक घोड़ों की आवाज़ सुनी। उसने पेड़ों के पीछे छिपकर देखा कि चालीस चोरों का एक गिरोह वहाँ आया है। वे एक विशाल चट्टान के सामने आकर रुके और उनके सरदार ने ऊँची आवाज़ में कहा, “खुल जा सिम सिम!”।

अली बाबा ने हैरानी से देखा कि चट्टान के बीच से एक दरवाज़ा खुला और चोर उसमें प्रवेश कर गए। थोड़ी देर बाद, चोर सोने, चाँदी और अन्य बेशकीमती खजानों से भरे थैलों के साथ बाहर आए। वे वापस घोड़ों पर चढ़े और “बंद हो सिम सिम” कहकर गुफा का दरवाज़ा बंद कर दिया और चले गए।

चोरों के जाने के बाद, अली बाबा चट्टान के पास आया और उसी वाक्यांश “खुल जा सिम सिम” को दोहराया। जैसे ही उसने यह कहा, चट्टान एक बार फिर से खुल गई। अली बाबा अंदर गया और उसने देखा कि वहाँ सोने, चाँदी और जवाहरात का ढेर लगा हुआ है। वह चकित रह गया, लेकिन उसने सिर्फ कुछ सोने के सिक्के अपनी झोली में डाले और जल्दी से बाहर आ गया। उसने “बंद हो सिम सिम” कहा और चट्टान फिर से बंद हो गई।

घर पहुँचकर अली बाबा ने अपनी पत्नी को यह अद्भुत घटना बताई और दोनों ने निर्णय किया कि वे इस खजाने का इस्तेमाल समझदारी से करेंगे। उन्होंने कुछ सिक्कों से अपने दैनिक जरूरतों को पूरा किया, लेकिन ज्यादा दिखावा नहीं किया।

अली बाबा का बड़ा भाई कसिम, जो एक लालची व्यापारी था, ने जब अली बाबा की बदली हुई हालत देखी, तो उसने उससे इसका रहस्य जानने की कोशिश की। अली बाबा ने उसे गुफा और खजाने की पूरी कहानी बता दी। कसिम लालच से भर गया और अगले ही दिन वह अपने साथ कई बोरियाँ लेकर गुफा में पहुँचा। उसने “खुल जा सिम सिम” कहकर गुफा को खोला और अंदर गया।

गुफा में दाखिल होकर कसिम ने जितना हो सके उतना सोना इकट्ठा कर लिया। लेकिन जब वह बाहर निकलने की कोशिश करने लगा, तो वह वाक्यांश “खुल जा सिम सिम” भूल गया। वह गुफा के अंदर फँस गया। थोड़ी देर बाद जब चोर वापस लौटे, तो उन्होंने कसिम को गुफा में देखा और बिना देर किए उसे मार डाला।

कसिम के वापस न लौटने पर उसकी पत्नी ने अली बाबा से मदद मांगी। अली बाबा गुफा में गया और वहाँ कसिम का शव देखकर उसे दुख हुआ। उसने कसिम के शव को गुप्त रूप से बाहर निकालकर अंतिम संस्कार कर दिया और उसकी पत्नी को इस घटना के बारे में कोई भी जिक्र न करने की सलाह दी।

अब चोरों का सरदार समझ गया कि किसी ने उनके खजाने का रहस्य जान लिया है। उसने अली बाबा का पता लगाने के लिए योजना बनाई। उसने अपने सभी साथियों के साथ व्यापारी का रूप धारण किया और अली बाबा के घर के पास पहुँचा। उसके पास चालीस तेल के बड़े-बड़े मटके थे, जिनमें से कुछ में चोर छिपे हुए थे। उसका इरादा रात के समय अली बाबा को मारने का था।

लेकिन अली बाबा की वफादार नौकरानी मर्ज़ीना को इस चाल की भनक लग गई। उसने एक तरकीब सोची। वह रात में सभी मटकों के पास गई और उनमें से एक-एक चोर को बेहोश कर दिया। अंत में उसने चोरों के सरदार को भी मार डाला। जब अली बाबा को यह सब पता चला, तो उसने मर्ज़ीना की बुद्धिमानी की सराहना की और उसे अपना परिवार का सदस्य बना लिया।

अली बाबा ने बाकी का जीवन शांति से बिताया। उसने खजाने का इस्तेमाल समझदारी से किया और अपने परिवार के साथ सुखपूर्वक रहने लगा। उसकी ईमानदारी और नेकदिली के कारण वह हमेशा याद किया जाता है।

इस प्रकार, अली बाबा की यह कहानी सिखाती है कि लालच और धोखाधड़ी का अंत हमेशा बुरा होता है, जबकि ईमानदारी, धैर्य और बुद्धिमानी से हर समस्या का हल निकाला जा सकता है।

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