किसी अनजाने और दूर-दराज के जंगल में, एक सुनसान रास्ते पर चार बच्चे – राजू, सीमा, गोपू और मीना – खोजी दिल के साथ चल रहे थे। उनकी जिज्ञासा उन्हें जंगल के भीतर एक अनजानी जगह की ओर ले गई, जिसे गुप्त जंगल कहा जाता था। इस जंगल के बारे में गाँव के बुजुर्ग कहानियाँ सुनाया करते थे, लेकिन कोई भी उसे ढूंढ नहीं पाया था।
जंगल के भीतर चलते हुए, मीना ने जमीन पर कुछ चमकते हुए पत्थर देखे। वे पत्थर वास्तव में रंगीन क्रिस्टल थे। राजू ने एक पत्थर उठाया और उसे ध्यान से देखा। तभी वह क्रिस्टल चमकने लगा और एक दिशा की ओर इशारा करने लगा। बच्चे उत्सुक हो गए और उस दिशा में बढ़े। थोड़ी दूर चलने पर उन्होंने एक प्राचीन द्वार देखा, जो पूरी तरह से बंद था और उस पर कुछ पहेलियाँ लिखी हुई थीं।
गोपू, जो हमेशा पहेलियों और रहस्यों में माहिर था, ने पहेली को ध्यान से पढ़ा और चुटकियों में उसका उत्तर दे दिया। जैसे ही उत्तर सही निकला, द्वार धीरे-धीरे खुलने लगा।
द्वार के पार जो दृश्य उन्होंने देखा, वह अद्भुत था। एक खूबसूरत सुनहरी वाटिका उनके सामने थी, जहाँ चिड़ियों की मीठी आवाजें गूँज रही थीं, और चारों ओर रंग-बिरंगे फूल खिल रहे थे। हवा में एक अजीब सी शांति और मिठास थी।
राजू और सीमा उस वाटिका में खेलने लगे, जबकि गोपू और मीना ने और गहराई से उस जगह की खोज शुरू की। जल्द ही वे वाटिका के बीचो-बीच एक सुनहरे मंदिर पर पहुँचे। मंदिर के अंदर एक चमचमाती मूर्ति थी, जो बेहद जीवंत लग रही थी, मानो वह उन पर नजर रख रही हो।
तभी, उनके पीछे से एक गहरी आवाज आई। वे पलटे तो देखा कि गाँव के वही बुजुर्ग खड़े थे, जिन्होंने गुप्त जंगल की कहानियाँ सुनाई थीं। उन्होंने बच्चों से कहा, “तुमने इस जंगल का रहस्य खोज निकाला है। यह मंदिर हमेशा से यहाँ था, लेकिन केवल वे ही इसे देख सकते हैं जिनका दिल सच्चा और निर्दोष हो।”
बच्चे खुशी से झूम उठे। बुजुर्ग ने आगे कहा, “यह जगह अब तुम्हारी है, लेकिन इसके साथ एक जिम्मेदारी भी है। तुम्हें इस जंगल और इसके रहस्यों की रक्षा करनी होगी।”
चारों बच्चों ने सहर्ष हामी भरी और खुशी-खुशी अपने गाँव लौट आए। वहाँ उन्होंने अपनी अद्भुत यात्रा और नए मिशन के बारे में सबको बताया।
उस दिन के बाद से गुप्त जंगल का रहस्य किसी के लिए भी रहस्य नहीं रहा, लेकिन उस जादुई वाटिका का आनंद केवल वे बच्चे ही उठा सकते थे, जिनका दिल सच्चा और मासूम था।