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एक बार की बात है, एक जंगल में एक चालाक सियार रहता था। वह अपनी होशियारी और बुद्धिमानी के लिए पूरे जंगल में मशहूर था। एक दिन, जंगल में भयंकर अकाल पड़ गया, और सियार के लिए भोजन ढूंढना मुश्किल हो गया। भूख से परेशान सियार ने सोचा कि अब कुछ खास करना पड़ेगा, नहीं तो भूख से मर जाएगा।

सियार इधर-उधर देखने लगा और एक दूर-दूर तक फैले हुए खेत की ओर बढ़ा। उस खेत में किसान ने अपनी फसल काटकर ढेरों में रखी हुई थी। सियार ने सोचा, “अगर मैं सीधे यहां से अनाज ले जाऊंगा, तो किसान मुझे पकड़ लेगा। मुझे कुछ चालाकी करनी पड़ेगी।”

सियार ने एक तरकीब निकाली। वह पास के गाँव में गया और वहाँ के कब्रिस्तान से एक पुरानी चिता से राख उठा ली। उसने उस राख को अपने पूरे शरीर पर मल लिया, जिससे उसका रंग बदल गया और वह भूत जैसा दिखने लगा। अब वह सियार, भूत के वेश में, रात को खेत में पहुँचा।

जब किसान और उसके मजदूरों ने रात को भूत जैसे दिखने वाले सियार को देखा, तो वे डर गए और भाग खड़े हुए। सियार ने उस रात खेत में अकेले ही मजे से अनाज खाया और जितना हो सका, उतना अनाज अपने ठिकाने में छिपा दिया।

अगली रात भी सियार ने वही तरकीब अपनाई और फिर से भूत बनकर खेत में पहुँचा। इस बार भी किसान और मजदूर डरकर भाग गए, और सियार ने फिर से अनाज खाया। यह सिलसिला कई दिनों तक चलता रहा।

फिर एक दिन, किसान ने सोचा, “यह भूत रोज़ क्यों आता है और सिर्फ मेरे ही खेत में क्यों? मुझे इसका कुछ उपाय करना होगा।” उसने गाँव के एक बुद्धिमान व्यक्ति से सलाह ली। उस व्यक्ति ने किसान से कहा, “यह भूत नहीं, बल्कि कोई चालाक जानवर हो सकता है। आज रात तुम खेत में छिपकर देखो और सच्चाई का पता लगाओ।”

किसान ने रात को अपने खेत में छिपकर देखा और यह देखकर हैरान रह गया कि वह भूत नहीं, बल्कि एक सियार था, जो राख में लिपटा हुआ था। किसान ने तुरंत अपने मजदूरों को बुलाया और सभी ने मिलकर सियार को पकड़ लिया।

इस तरह, सियार की चालाकी काम नहीं आई, और उसे अपनी हरकत की सज़ा भुगतनी पड़ी। किसान ने सियार को जंगल में छोड़ दिया, लेकिन अब वह सियार अपनी चालाकियों से सतर्क रहने लगा, क्योंकि उसे समझ में आ गया था कि हर चालाकी हमेशा काम नहीं आती।

कहानी की सीख: चालाकी और होशियारी का इस्तेमाल सोच-समझकर करना चाहिए, क्योंकि हर बार चालाकी सफल नहीं होती।

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