एक प्रसिद्ध हिंदी कथा है जो भारतीय पौराणिक कथाओं में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। यह कहानी आमतौर पर विभिन्न संस्करणों में मिलती है, और यहाँ एक सामान्य संस्करण प्रस्तुत है:
गुप्त मधीर की कहानी
प्राचीन भारत में एक छोटे से गांव में एक समृद्ध किसान रहता था, जिसका नाम था मधीर। मधीर अत्यंत ईमानदार और मेहनती व्यक्ति था, और वह अपने गांव में बहुत सम्मानित था। लेकिन उसके पास एक रहस्य था जिसे उसने कभी किसी से साझा नहीं किया था।
मधीर का घर बहुत सुंदर और आरामदायक था, और उसके पास बहुत सारा धन और संपत्ति थी। लेकिन उसकी असली संपत्ति उसकी एक गुप्त पोटली थी, जिसमें उसने बहुत सारा सोना और कीमती रत्न छिपा रखा था। यह पोटली उसने एक बहुत ही गहरे और सुरक्षित गड्ढे में छुपा रखी थी जो उसके घर के पीछे एक घने बाग में था।
मधीर का मानना था कि धन केवल भौतिक सुख देने के लिए नहीं होता, बल्कि इसका उपयोग समाज के लाभ के लिए होना चाहिए। इसलिए, उसने अपने धन का अधिकांश हिस्सा गांव के विकास, गरीबों की मदद और धार्मिक कार्यों के लिए उपयोग किया। उसकी उदारता और दयालुता ने उसे गांव का एक आदर्श नेता बना दिया।
एक दिन, जब मधीर वृद्ध हो गया और उसकी मृत्यु का समय करीब आ गया, उसने सोचा कि उसकी गुप्त पोटली को किसी के साथ साझा करना चाहिए, ताकि इसका उपयोग अच्छे कार्यों के लिए हो सके। उसने अपने प्रिय शिष्य को बुलाया और उसे पोटली का स्थान बताया, लेकिन उसने यह भी कहा कि इसका उपयोग केवल उस समय किया जाए जब गांव को सबसे ज्यादा जरूरत हो।
मधीर की मृत्यु के बाद, उसके शिष्य ने पोटली को सुरक्षित रूप से निकाल लिया, लेकिन उसने इसे तब तक नहीं खोला जब तक गांव पर कोई गंभीर संकट न आए। कई सालों बाद, जब गांव पर सूखा और अकाल पड़ा, तब शिष्य ने पोटली खोली और उसका धन गांव के पुनर्निर्माण और लोगों की मदद में लगा दिया।
गांव ने फिर से समृद्धि प्राप्त की, और मधीर की दयालुता और सोच को हमेशा याद किया गया। गुप्त मधीर की यह कहानी हमें सिखाती है कि सच्चे धन और समृद्धि का मूल्य उसके उपयोग में होता है और जीवन में वास्तविक अमीरी दया और उदारता में होती है।
यह कहानी भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों और नैतिक शिक्षा को दर्शाती है, और इसका संदेश यह है कि सच्चा धन और समृद्धि केवल तब मूल्यवान होती है जब उसका उपयोग समाज के लाभ के लिए किया जाए।