विष्वसुदरी और उसकी अद्भुत अहंकार की कहानी
एक समय की बात है, एक दूर देश में विष्वसुदरी नाम की एक युवती रहती थी। वह अपनी सुंदरता, विद्या और गुणों के लिए प्रसिद्ध थी। लोग उसे ‘विष्वसुदरी’ का नाम इसलिए देते थे क्योंकि उसकी सुंदरता और गुणों का कोई भी तुलना नहीं कर सकता था।
विष्वसुदरी का मानना था कि उसकी सुंदरता और प्रतिभा उसे अन्य लोगों से श्रेष्ठ बनाती है। इस अहंकार ने उसकी आत्ममुग्धता को और भी बढ़ा दिया। वह अपनी प्रशंसा सुनने की आदी हो गई थी और दूसरों की सलाह को उसने कभी महत्व नहीं दिया।
एक दिन, विष्वसुदरी ने एक महल में एक भव्य आयोजन रखा। उसने अपनी सुंदरता और ऐश्वर्य को दिखाने के लिए समारोह आयोजित किया। सभी अमीर और प्रतिष्ठित लोग वहां आमंत्रित थे।
इस आयोजन में एक विद्वान, जो कि बहुत ही ज्ञानी और संतुष्ट व्यक्ति था, भी आमंत्रित था। उसने आयोजन की भव्यता को देखकर मुस्कुराया और विष्वसुदरी के पास गया। उसने विष्वसुदरी से कहा, “आपकी सुंदरता और ऐश्वर्य की तारीफ करने के लिए शब्द कम पड़ते हैं, लेकिन एक प्रश्न है: क्या आपकी सुंदरता का अहंकार आपको सच्चे सुख और शांति दे सकता है?”
विष्वसुदरी ने हंसते हुए उत्तर दिया, “मैंने तो यही सीखा है कि सुंदरता और प्रतिभा ही सबसे बड़ी सम्पत्ति है। अहंकार मेरे आत्म-संस्कार का हिस्सा है।”
विद्वान ने मुस्कुराते हुए कहा, “सही है, लेकिन याद रखो, अहंकार हमें सच्चे मित्रों, सच्चे सुख और शांति से दूर कर देता है। एक दिन ऐसा आएगा जब तुम्हारी सुंदरता का अहंकार तुम्हारी सबसे बड़ी बाधा बनेगा।”
विष्वसुदरी ने विद्वान की बातों को नजरअंदाज कर दिया। समय बीतता गया और विष्वसुदरी का अहंकार और बढ़ता गया। लेकिन जैसे-जैसे वह बड़ी होती गई, उसकी सुंदरता धूमिल होने लगी। उसकी अहंकार ने उसे अकेला कर दिया, और उसकी महानता की परिभाषा बदल गई।
एक दिन, विष्वसुदरी ने समझा कि सच्ची सुंदरता और महानता बाहरी रूप में नहीं, बल्कि आंतरिक गुणों में होती है। उसके अहंकार की दीवारें टूट चुकी थीं और उसने सच्चे आत्मज्ञान की ओर कदम बढ़ाया।
विष्वसुदरी ने अपनी गलतियों को स्वीकार किया और दूसरों के साथ विनम्रता और समझदारी से पेश आने लगी। अंततः, उसने पाया कि सच्चा सुख और शांति उसकी आत्मा में छिपे हुए थे, जो केवल अहंकार को छोड़ने पर ही मिल सकते थे।
इस प्रकार, विष्वसुदरी की कहानी हमें यह सिखाती है कि अहंकार और आत्ममुग्धता हमें असली खुशियों से दूर कर सकती है। सच्ची सुंदरता और महानता हमारी आंतरिक गुणों में होती है, न कि बाहरी रूप में।