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रितेश की कहानी

रितेश एक अमीर घर से ताल्लुक रखने वाला लड़का था। उसके पास एक बड़ी नौकरी, बड़ा घर, और दौलत थी, जिससे उसने अपने जीवन में घमंड का शिकार हो गया था। उसे लगता था कि पैसे के बल पर वह सब कुछ हासिल कर सकता है, चाहे वह दोस्ती हो या प्यार।

रितेश के जीवन में कई दोस्त और गर्लफ्रेंड्स थीं, लेकिन वह किसी के साथ सच्ची दोस्ती या प्यार नहीं कर पाया। उसकी सारी दोस्ती और रिश्ते केवल मौज-मस्ती और दिखावे तक सीमित थे। लेकिन जब रितेश किसी कठिनाई में फंसा, तब उसे एहसास हुआ कि उसके पास कोई सच्चा दोस्त नहीं है जो उसकी मदद कर सके।

रितेश को लड़कियों के साथ समय बिताने की आदत हो गई थी। वह अक्सर अपने दोस्तों और गर्लफ्रेंड्स के साथ पार्टियों में जाता और बड़ी-बड़ी जगहों पर घूमता था। उसे लगता था कि उसका पैसा उसे हर किसी के दिल में जगह दिला सकता है।

एक नई शुरुआत

एक दिन, रितेश अपने घर की छत पर टहल रहा था, तभी उसने देखा कि सामने वाली छत पर एक लड़की भी टहल रही थी। वह लड़की बेहद सुंदर और सभ्य थी। रितेश ने सोचा कि वह उसे आसानी से प्रभावित कर सकता है, जैसे उसने कई और लड़कियों को किया था। लेकिन इस बार उसकी सोच गलत साबित हुई।

लड़की, जिसका नाम स्नेहा था, एक संस्कारी परिवार से थी और उसने रितेश के पैसों और दिखावे में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। रितेश ने उसे प्रभावित करने के लिए कई तरीके आजमाए, लेकिन स्नेहा ने कभी उसकी ओर ध्यान नहीं दिया। वह अपने पिता के साथ हाल ही में इस इलाके में शिफ्ट हुई थी, जो सरकारी नौकरी में थे।

रितेश का परिवर्तन

रितेश को पहली बार अहसास हुआ कि पैसे से सब कुछ खरीदा नहीं जा सकता। स्नेहा के प्रति उसका आकर्षण दिन-ब-दिन बढ़ता गया, और वह अपने दोस्तों और पुरानी आदतों से दूर होने लगा। अब वह दिनभर सिर्फ स्नेहा के बारे में ही सोचता रहता था।

जब भी स्नेहा छत पर आती, रितेश उसे देखने के लिए वहीं खड़ा रहता। लेकिन स्नेहा ने कभी उसकी तरफ ध्यान नहीं दिया। यह बात रितेश को अंदर तक चोट पहुंचा रही थी, लेकिन वह इसके बारे में कुछ नहीं कर सकता था।

बिछड़ने का समय

स्नेहा के पिता की नौकरी की प्रकृति ऐसी थी कि उन्हें हर तीन महीने में एक नई जगह पर स्थानांतरित किया जाता था। जैसे ही तीन महीने पूरे हुए, स्नेहा और उसका परिवार शहर छोड़ने की तैयारी करने लगे।

रितेश को जब यह बात पता चली तो वह अंदर से टूट गया। उसने सोचा कि उसने स्नेहा को पाने के लिए कुछ भी नहीं किया और अब वह हमेशा के लिए उससे दूर जा रही है। जाने वाले दिन, रितेश ने स्नेहा से मिलने का साहस किया और उसके पास गया।

एक महत्वपूर्ण सीख

स्नेहा ने रितेश से कहा, “तुम्हारे पास जितना पैसा है, उतना ही घमंड भी है। तुम्हारी वजह से कई लोगों की ज़िंदगियां बर्बाद हो चुकी हैं। शायद यही कारण है कि भगवान ने तुम्हें सजा दी है कि कोई सच्चा प्यार तुम्हें कभी नहीं मिलेगा।”

रितेश को समझ आ गया कि उसका घमंड ही उसकी सबसे बड़ी कमजोरी थी। वह सोचने लगा कि इतने पैसे का क्या फायदा अगर कोई सच्चा प्यार ही नहीं मिला।

इस घटना ने रितेश को पूरी तरह से बदल दिया। उसे समझ में आया कि इंसान को कभी भी अपने पैसे या स्थिति पर घमंड नहीं करना चाहिए। सच्ची खुशियां केवल दिल से मिलती हैं, न कि दौलत से।


उम्मीद है, यह कहानी आपके अनुरूप होगी। यह कहानी हमें यह सिखाती है कि सच्चा प्यार और दोस्ती पैसे से नहीं खरीदे जा सकते, और घमंड इंसान को केवल अकेलापन ही देता है।

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